where memories reside their abode with the euphoric feelings and sprouted them on the ground of phrases
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Thursday, September 13, 2018
Monday, August 27, 2018
तेरा इश्क़ है.......
तेरा इश्क़ है। .......
बेसूद खोया मीरा की भक्ति सा,
तेरा इश्क़ है...
फूल से खिंचता उस भँवरे सा,
तेरा इश्क़ है....
मंदिर की पूजा और मस्जिद की अजान सा,
तेरा इश्क़ है.......
हुस्न से लिप्टा एक प्यारा सा लहजा,
तेरा इश्क़ है.....
पानी से घिरा कोई अोंस भरी रात सा,
तेरा इश्क़ है.......
मोहब्बत के पानी में धुलता उस पेड़ सा,
तेरा इश्क़ है.......
मुश्ताक़ किसी चाह का तुझे पाना,
तेरा इश्क़ है.......
तुझे चाहना और चाहना,
तेरा इश्क़ है......
तेरा इश्क़ है.......
तेरा इश्क़ है.......
बेसूद खोया मीरा की भक्ति सा,
तेरा इश्क़ है...
फूल से खिंचता उस भँवरे सा,
तेरा इश्क़ है....
मंदिर की पूजा और मस्जिद की अजान सा,
तेरा इश्क़ है.......
हुस्न से लिप्टा एक प्यारा सा लहजा,
तेरा इश्क़ है.....
पानी से घिरा कोई अोंस भरी रात सा,
तेरा इश्क़ है.......
मोहब्बत के पानी में धुलता उस पेड़ सा,
तेरा इश्क़ है.......
मुश्ताक़ किसी चाह का तुझे पाना,
तेरा इश्क़ है.......
तुझे चाहना और चाहना,
तेरा इश्क़ है......
तेरा इश्क़ है.......
तेरा इश्क़ है.......
Friday, June 22, 2018
waiting for me......
.....and the rain drench me sudden,
though, I knew this;
I am crying on the cliff
trying to hide these tears;
wound burn like the magma,
and a bewilderment inside me; growing rapidly,
thunderstorm scared me,
and I'm hiding myself behind own negativity;
screaming for victory,
crying for destiny,
waiting for me,
and trying to be then me,
but the rain will drench me sudden,
though, I knew this.
Friday, May 4, 2018
बताओ?
आऊं क्या साथ निभाने फिर?
याद आगयी जो मेरी तुम्हे,
आऊं क्या याद दिलाने फिर?
छोड़ गए जो सब तुम्हें,
आऊं क्या साथ निभाने फिर?
तुम चल तो रही हो ना?
सहमी तो नहीं ,खुश तो हो ना?
क्या संवार लेती हो बालों को खुद ही?
कर लेती हो बातें खुद से?
बताओ?
बैठती हो अकेली क्या?
डरती तो नहीं, कहती तो हो ना?
क्या पी लेती हो चाय अकेले फिर?
मीठी तो होती है ना?
जलाती हो क्या अब भी
अदाओं से अपनी तुम; किसे?
बताओ?
तुम बोल तो रही हो ना?
खामोश तो नहीं,कोई सुन्न तो रहा है ना?
सुनाती हो सपने फिर किसे अब?
क्या अब भी रहता हूँ मैं?
करती हो चुगलियां अब किस से?
पसन्द आते हैं तुम्हें क्या सब अब ?
बताओ?
तुम महसूस तो कर रही हो ना?
बेवज़ह तो नहीं, मैं याद तो हूँ ना?
सुनाती हो दर्द किसे अब?
किसे लिपटकर रोती हो?
क्या लेती हो आघोश में उसे भी ?
सजाता है अपने लब पर मोती वो भी?
बताओ, चलो अब बता भी दो?
क्या जूठे हैं वो बर्तन अभी भी?
क्या करती है इंतज़ार वो मेज़ अब भी?
क्या ठहरता है सूरज वहाँ अब भी?
क्या धड़कता है दिल इंतज़ार में अब भी?
क्या लगती हो अधूरी मुझ बिन अब भी?
क्या गुनगुनाती हो मुझे अब भी?
क्या सुनाती हो मुझे कहीं अब भी?
क्या करती हो इंतज़ार अब भी?
बताओ, कुछ कहती क्यों नहीं ?
अब भी, आऊं क्या साथ निभाने?
Wednesday, April 18, 2018
the lie....
The lie, you've created,
made my love,
soothed my pain,
and carved me in you,
in your soul;
the lie, bestow me
& your vivid love.......
मैं तपता शरद हिम् सा हूँ,
तू सीलन पड़ी जमीन मेरी,
मैं मुरझा हुवा फूल कोई,
तू मंडराती शरारती तितली मेरी
और हूँ मैं अद-गाया राग कोई,
तू तान मेरी सादगी भरी।
made my love,
soothed my pain,
and carved me in you,
in your soul;
the lie, bestow me
& your vivid love.......
मैं तपता शरद हिम् सा हूँ,
तू सीलन पड़ी जमीन मेरी,
मैं मुरझा हुवा फूल कोई,
तू मंडराती शरारती तितली मेरी
और हूँ मैं अद-गाया राग कोई,
तू तान मेरी सादगी भरी।
Tuesday, April 17, 2018
The Dream's Phrase.......
you answer with provocation,
Why don't you say,
what is this style of conversation?
Flowing in vein we regard as vain....
Unless blood it is that flows from the eyes"
.... & eventually I have found, the truth has fallen with her tears and washed my unexplained lie.
Friday, April 13, 2018
ख़यालात........
"मेरे दिल में दफ़न जज़्बात,
तेरी ज़ुबान आगए,
तूने अभी छुवा भी नही,
मेरी रूह तेरे एहसास आगए,
अब आघोश में ले लिपटकर मुझे,
यूँ तेरे होने के ख़यालात आगए।"
"A love story, that begins with a dream and ends with a dream too..."
"I know her knavery & I know she is knave too,
I know she will come again & I know she will leave again too."
I know she will come again & I know she will leave again too."
Tuesday, April 10, 2018
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं? - 2
तरसेगी आह जब मेरी,
दर्द जितना भुलाने को,
तबीब से जरा पूछो,
मरहम क्यों ये चुभता है?
वो तितली यूँ भटकती है,
हर कांटे तड़पती है,
बसंत से जरा पूछो,
क्यूँ अब वो देर करता है?
हुवी जब राधा जो मोहित,
कान्हा तेरी मुरली को,
अकबर से जरा पूछो,
गीत वो भी समझता है।
कहाँ अलि - कहाँ कान्हा,
कहाँ क़व्वाल - कहाँ किर्तन,
जहाँ जाओ वहाँ पूछो,
हिंदुस्तान क्यूँ ये लड़ता है?
ये मेरी क़ब्र,
वो समशान तेरा,
उस माँ से जरा पूछो,
ज़ख्म उसका भी जलता है।
कहाँ क़ाबा, कहाँ कशी,
कहाँ हरा कहाँ केशर,
रंगों से जरा पूछो,
धर्म वो कोई सजता है?
कहाँ ढूँढू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बशेरा अब?
मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह,
कहाँ हिन्दुस्तां मेरा अब डेरा करता है?
दर्द जितना भुलाने को,
तबीब से जरा पूछो,
मरहम क्यों ये चुभता है?
वो तितली यूँ भटकती है,
हर कांटे तड़पती है,
बसंत से जरा पूछो,
क्यूँ अब वो देर करता है?
हुवी जब राधा जो मोहित,
कान्हा तेरी मुरली को,
अकबर से जरा पूछो,
गीत वो भी समझता है।
कहाँ अलि - कहाँ कान्हा,
कहाँ क़व्वाल - कहाँ किर्तन,
जहाँ जाओ वहाँ पूछो,
हिंदुस्तान क्यूँ ये लड़ता है?
ये मेरी क़ब्र,
वो समशान तेरा,
उस माँ से जरा पूछो,
ज़ख्म उसका भी जलता है।
कहाँ क़ाबा, कहाँ कशी,
कहाँ हरा कहाँ केशर,
रंगों से जरा पूछो,
धर्म वो कोई सजता है?
कहाँ ढूँढू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बशेरा अब?
मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह,
कहाँ हिन्दुस्तां मेरा अब डेरा करता है?
Monday, April 9, 2018
हुँकार.........
वक़्त काल हर जग पहरा,
ये पहर तेरा,वो पहर मेरा,
बादल गरज शरद फिर ठिठुरा,
सावन भादों सब लगे ठहरा,
करुण ब्यथा क्यूँ अभी गाऊं?
अंतर अग्नि फिर सुलगाऊँ,
मातम -मातम क्यूँ मनाऊँ?
जीत बिगुल हर पार बजाऊँ,
हार कहाँ जो हार मनाऊँ,
जोर हुंकार हर पार लगाऊँ,
मृत्यु कहाँ, जो जीत वो जाये,
हार कहाँ, जो शोक मनाये,
वक़्त काल है हर जग पहरा,
ये पहर तेरा, वो पहर मेरा।।।
Wednesday, April 4, 2018
अनुगान....
असंयोजित नभ चर जाऊँ,
बंधे पंख फिर और फैलाऊँ,
उधर बादल मुझे पुकारे,
सूरज लाल फिर लज्जित होजाये,
हार संग न अब मै विलाप करूँ,
मैं जीत अनुगान करूँ
मैं जीत अनुगान करूँ।
Thursday, March 15, 2018
Wednesday, February 14, 2018
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
सूरज को जरा पूछो,
रात क्यूँ न चढ़ता है?
अँधेरा आँख चुभता है,
सन्नाटा दर्द आवाज करता है;
चाँद से जरा पूछो,
अमावस क्यूँ न चमकता है?
दर्द ये शोर करता है,
वो रातों नहीं सोता,
इस दर्द को जरा पूछो,
वो रह-रह क्यूँ सिसकता है?
खिलतें फूल हैं कभी,
कभी झड़े पत्ते भी उड़ते हैं,
पतझड़ से जरा पूछो,
सावन क्यूँ तरसता है?
तरसती आज रूह मेरी,
खुदा तुझको जो पाने की,
क़ाज़ी से जरा पूछो,
कहाँ वो(ख़ुदा) बसेरा करता है?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
मेरे मौला मुझे बता दे,
अँधेरा इतना क्यूँ ठहरता है?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
सूरज को जरा पूछो,
रात क्यूँ न चढ़ता है?
अँधेरा आँख चुभता है,
सन्नाटा दर्द आवाज करता है;
चाँद से जरा पूछो,
अमावस क्यूँ न चमकता है?
दर्द ये शोर करता है,
वो रातों नहीं सोता,
इस दर्द को जरा पूछो,
वो रह-रह क्यूँ सिसकता है?
खिलतें फूल हैं कभी,
कभी झड़े पत्ते भी उड़ते हैं,
पतझड़ से जरा पूछो,
सावन क्यूँ तरसता है?
तरसती आज रूह मेरी,
खुदा तुझको जो पाने की,
क़ाज़ी से जरा पूछो,
कहाँ वो(ख़ुदा) बसेरा करता है?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
मेरे मौला मुझे बता दे,
अँधेरा इतना क्यूँ ठहरता है?
Sunday, February 11, 2018
एक अलग मजा....
एक अलग ही मजा है,
तेरे रंग में रंग जाने में,
रूठे तो तुझे मनाने में,
तेरे रंग में रंग जाने में,
रूठे तो तुझे मनाने में,
तेरे इश्क़ में,
हद्द से गुजर जाने में,
एक अलग ही मजा है।
तुझे बेपनाह चाहने में,
तुझे खोने से डर जाने में,
तेरी आँखों में डूब जाने में,
एक अलग ही मजा ह।
तेरी जुल्फें सुलझाने में,
बाँहों में समाने में,
तेरी यादों में खोजाने में,
हाँ,एक अलग ही मजा है;
तुझे बेइन्तेहाँ चाहने में।
हद्द से गुजर जाने में,
एक अलग ही मजा है।
तुझे बेपनाह चाहने में,
तुझे खोने से डर जाने में,
तेरी आँखों में डूब जाने में,
एक अलग ही मजा ह।
तेरी जुल्फें सुलझाने में,
बाँहों में समाने में,
तेरी यादों में खोजाने में,
हाँ,एक अलग ही मजा है;
तुझे बेइन्तेहाँ चाहने में।
Wednesday, February 7, 2018
मौजूद हूँ वहाँ?
....और मैं मौजूद वहाँ
जहाँ सूरज भी लाल था,
बादलों से झांकता मुझे।
तितलियाँ सवाँर रही थी सब,
हवा झूलाती फूलों को,
और ची ची की आवाजें,
जो खींचती मुझे तन्हाई से दूर।
मैं इक नशे में डूबा वहाँ
जहाँ बादलों का झुण्ड सफ़ेद था,
घर था किसी इक परी का,
रंग चुराती तितलियाँ फूलों से,
और बिखेरती हवा में;
हरे पेड़ बुला रहे थे,
चहक को अपनी ओर।
और मैं मौजूद रहा,
वहाँ जहाँ मैं आज भी हूँ,
यादों में तेरी,
महसूस होता भार इक काँधे पर,
सिसकती आवाज लेती नाम मेरा,
धड़कन बढाती;
जुल्फें घोलती मिठास,
इन फीके फूलों की सुंगंध में;
और धीरे से एक जकड़न भींचती मुझे,
शामिल करती तुझमे,
और मैं डूबा रहता,
नहीं डूबा हूँ आज भी नशे में तेरे,
मौजूद हूँ वहाँ।
Thursday, January 18, 2018
तुझमे मैं तू बनु.......
यादों की, ख्वाबों की पहचान बनु,
आ फिर मैं तेरी साँसों की आवाज बनु,
घुलूं तुझमे फिर तुझमे तू बनु,
आ फिर तेरी अजान आवाज बनु,
तेरे रंगों की पहचान बनु,
जीत हार हर गान बनु,
कहानी तेरी किरदार बनु,
तेरी मूरत पहरेदार बनु,
आ फिर तुझमे मैं तू बनु,
आ फिर तुझमे मैं तू बनु,
कृष्ण तू तेरी राधा बनु,
सितार तू उसका धागा बनु,
ओंश में लिप्टा तेरा पानी बनु,
तेरा जीवन कहानी बनु,
आ फिर तुझमे मैं तू हर बार बनु,
आ फिर तुझमे मैं तू हर बार बनु।
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