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Thursday, March 15, 2018

व्याकुलता....













"ख्वाब नए और नए सवेरे ,
रातों की कोई कल्पना ना कर ;
ना कर शब्द निशब्द अभी तू,
रंग गुलाबी तू धारण कर,
सीख सलोने गीत पुराने,
रंगो में खुदको शामिल कर,
कर अब सृजन श्रृंगार तू अपना,
उनके आने की अब बस प्रतिक्षा कर |"

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