Search This Blog

Wednesday, April 4, 2018

अनुगान....

असंयोजित नभ चर जाऊँ,
बंधे पंख फिर और फैलाऊँ,
उधर बादल मुझे पुकारे,
सूरज लाल फिर लज्जित होजाये,
हार संग न अब मै विलाप करूँ,
मैं जीत अनुगान करूँ 
मैं जीत अनुगान करूँ।

No comments:

Post a Comment