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Tuesday, April 10, 2018

कहाँ ढूंडू सवेरा मैं? - 2

तरसेगी आह जब मेरी,
दर्द जितना भुलाने को,
                तबीब से जरा पूछो,
                मरहम क्यों ये चुभता है?
वो तितली यूँ भटकती है,
हर कांटे तड़पती है,
                बसंत से जरा पूछो,
                क्यूँ अब वो देर करता है?
हुवी जब राधा जो मोहित,
कान्हा तेरी मुरली को,
                अकबर से जरा पूछो,
                गीत वो भी समझता है।
कहाँ अलि - कहाँ कान्हा,
कहाँ क़व्वाल - कहाँ किर्तन,
                जहाँ जाओ वहाँ पूछो,
                हिंदुस्तान क्यूँ ये लड़ता है?
ये मेरी क़ब्र,
वो समशान तेरा,
                उस माँ से जरा पूछो,
                ज़ख्म उसका भी जलता है।
कहाँ क़ाबा, कहाँ कशी,
कहाँ हरा कहाँ केशर,
                रंगों से जरा पूछो,
                धर्म वो कोई सजता है?
कहाँ ढूँढू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बशेरा अब?
                मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह,
               कहाँ हिन्दुस्तां मेरा अब डेरा करता है?

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