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Wednesday, April 18, 2018

the lie....

The lie, you've created,
made my love,

soothed my pain,
and carved me in you,
in your soul;
the lie, bestow me
& your vivid love.......




मैं तपता शरद हिम् सा हूँ,
तू सीलन पड़ी जमीन मेरी,
मैं मुरझा हुवा फूल कोई,
तू मंडराती शरारती तितली मेरी
और हूँ मैं अद-गाया राग कोई,
तू तान मेरी सादगी भरी। 


Tuesday, April 17, 2018

The Dream's Phrase.......

"for anything I say,
you answer with provocation,
Why don't you say,
what is this style of conversation?
Flowing in vein we regard as vain....
Unless blood it is that flows from the eyes"





.... & eventually I have found, the truth has fallen with her tears and washed my unexplained lie.

Friday, April 13, 2018

ख़यालात........

"मेरे दिल में दफ़न जज़्बात,
तेरी ज़ुबान आगए,
तूने अभी छुवा भी नही,
मेरी रूह तेरे एहसास आगए,
अब आघोश में ले लिपटकर मुझे,
यूँ तेरे होने के ख़यालात आगए।"


"A love story, that begins with a dream and ends with a dream too..."

"I know her knavery & I know she is knave too,
I know she will come again & I know she will leave again too."

Tuesday, April 10, 2018

कहाँ ढूंडू सवेरा मैं? - 2

तरसेगी आह जब मेरी,
दर्द जितना भुलाने को,
                तबीब से जरा पूछो,
                मरहम क्यों ये चुभता है?
वो तितली यूँ भटकती है,
हर कांटे तड़पती है,
                बसंत से जरा पूछो,
                क्यूँ अब वो देर करता है?
हुवी जब राधा जो मोहित,
कान्हा तेरी मुरली को,
                अकबर से जरा पूछो,
                गीत वो भी समझता है।
कहाँ अलि - कहाँ कान्हा,
कहाँ क़व्वाल - कहाँ किर्तन,
                जहाँ जाओ वहाँ पूछो,
                हिंदुस्तान क्यूँ ये लड़ता है?
ये मेरी क़ब्र,
वो समशान तेरा,
                उस माँ से जरा पूछो,
                ज़ख्म उसका भी जलता है।
कहाँ क़ाबा, कहाँ कशी,
कहाँ हरा कहाँ केशर,
                रंगों से जरा पूछो,
                धर्म वो कोई सजता है?
कहाँ ढूँढू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बशेरा अब?
                मेरे ईश्वर मेरे अल्लाह,
               कहाँ हिन्दुस्तां मेरा अब डेरा करता है?

Monday, April 9, 2018

हुँकार.........

वक़्त काल हर जग पहरा,
ये पहर तेरा,वो पहर मेरा,
बादल गरज शरद फिर ठिठुरा,
सावन भादों सब लगे ठहरा,
करुण ब्यथा क्यूँ अभी गाऊं?
अंतर अग्नि फिर सुलगाऊँ,
मातम -मातम क्यूँ मनाऊँ?
जीत बिगुल हर पार बजाऊँ,
हार कहाँ जो हार मनाऊँ,
जोर हुंकार हर पार लगाऊँ,
मृत्यु कहाँ, जो जीत वो जाये,
हार कहाँ, जो शोक मनाये,
वक़्त काल है हर जग पहरा,
ये पहर तेरा, वो पहर मेरा।।।

Wednesday, April 4, 2018

अनुगान....

असंयोजित नभ चर जाऊँ,
बंधे पंख फिर और फैलाऊँ,
उधर बादल मुझे पुकारे,
सूरज लाल फिर लज्जित होजाये,
हार संग न अब मै विलाप करूँ,
मैं जीत अनुगान करूँ 
मैं जीत अनुगान करूँ।