इक रोज देखता खुला आसमा...
टिमटिमाते तारे, और उनसे घिरा चाँद,
कह रहा हो मुझे,अकेला पाकर;
मेरी ख़ामोशी समझता,
और मैं पहचानता उस अपने को वहां ऊपर,
जैसे देख रहा हो मुझे वो भी ,
रखे निगाह चमकती चादर से;
रोशन करते हुए इस काली रात को,
सरसराती हवा कपाँति जिस्म मेरा,
मेरे साथ होने का दावा करती हुवी,
ओस की बूंद से भीगी पलक, आंशुओं को बढाती,
और अचानक इक टूटता तारा दौड़ता,
हो आतुर मुझसे मिलन को;
दूर कंही इक पाश्वक मेरे वहाँ होने का प्रमाण देता,
और शहर की बंध होती रोशनियां, डराती,
और फिर मैं रात भर आँखे टिकाये चाँद पर,
वो जो अपना सा लगता,
मेरा साथ दे रहा हो,कहके
मेरा साथ दे रहा हो,कहके
"मैं साथ हूँ तेरे इस डरावनी रात तक"
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