चहक उठी आँगन में इक किलकारी,
जबसे तू आयी मेरा जीवन करने हरयाली,
तुझे कोख उठाये हर रोज आलिंघन करता,
पर उस पल तेरी निगाह में वो फर्क न दिखता,
तेरी चहक में पूरा आँगन हँसता,
जैसे घोर अंधियारे इक दिया सजता,
तुझे हर रोज उठाके खूब खिलाऊँ,
हाथ पकड़ तुझे चलना सिखाऊँ।
इक रोज़ सुना वो आधा शब्द जब तेरे मुख से,
मन्न हुवा रो दूँ मैं जी भर बहुत और बहुत सुख से,
फिर तेरे क़दमों की खनक हर सुबह मुझे जगाती,
जैसे सोये हुए श्रमिक को प्रेरित कराती,
तेरे हर कदम सफर मैं साथ रहता,
कब शयानी हुवी मेरी परी इस बात से आचम्भित करता,
आज डोली में बैठ जाती मेरी सयानी,
हर आँख से निकलकर पानी,
तेरी किलकारी मुझे अब हर रोज बुलाती,
सारे पन्ने तेरे जाने तक मुझे गिनाती,
चहक उठी थी इक दिन मेरे आँगन भी तेरी किलकारी,
अब वो चहक मुझे हर रोज बुलारी।