कन्हा भुला हूँ तुम्हे?
कन्हा भुला हूँ तुम्हे?
अक्सर तुम ये कहते थे,कि
"जमीनी सफर मुकम्मल होते ही
तमाम रिश्ते धुंदले पड़ने लगते हैं"!
क्या अब भी तुम्हे ऐसा लगता है?
देखो तो आज भी कितनी बेसब्री से मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ;
तुम्हारे मुस्कराते चेहरे को जब तक ना देख लूँ
चैन और करार कान्हा आता है मुझे?तुम्हे भी रिश्ते निभाने आते हैं ये जान चूका हूँ मैं,
खाब में सही हर रोज वक़्त निकालकर तुम आज भी रिश्ता निभाने आ ही जाते हो
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