कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
सूरज को जरा पूछो,
रात क्यूँ न चढ़ता है?
अँधेरा आँख चुभता है,
सन्नाटा दर्द आवाज करता है;
चाँद से जरा पूछो,
अमावस क्यूँ न चमकता है?
दर्द ये शोर करता है,
वो रातों नहीं सोता,
इस दर्द को जरा पूछो,
वो रह-रह क्यूँ सिसकता है?
खिलतें फूल हैं कभी,
कभी झड़े पत्ते भी उड़ते हैं,
पतझड़ से जरा पूछो,
सावन क्यूँ तरसता है?
तरसती आज रूह मेरी,
खुदा तुझको जो पाने की,
क़ाज़ी से जरा पूछो,
कहाँ वो(ख़ुदा) बसेरा करता है?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
मेरे मौला मुझे बता दे,
अँधेरा इतना क्यूँ ठहरता है?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
सूरज को जरा पूछो,
रात क्यूँ न चढ़ता है?
अँधेरा आँख चुभता है,
सन्नाटा दर्द आवाज करता है;
चाँद से जरा पूछो,
अमावस क्यूँ न चमकता है?
दर्द ये शोर करता है,
वो रातों नहीं सोता,
इस दर्द को जरा पूछो,
वो रह-रह क्यूँ सिसकता है?
खिलतें फूल हैं कभी,
कभी झड़े पत्ते भी उड़ते हैं,
पतझड़ से जरा पूछो,
सावन क्यूँ तरसता है?
तरसती आज रूह मेरी,
खुदा तुझको जो पाने की,
क़ाज़ी से जरा पूछो,
कहाँ वो(ख़ुदा) बसेरा करता है?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
मेरे मौला मुझे बता दे,
अँधेरा इतना क्यूँ ठहरता है?