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Wednesday, February 14, 2018

कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?

कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
                    सूरज को जरा पूछो,
                    रात क्यूँ  न चढ़ता है?
अँधेरा आँख चुभता है,
सन्नाटा दर्द आवाज करता है;
                    चाँद से जरा पूछो,
                    अमावस क्यूँ न चमकता है?
दर्द ये शोर करता है,
वो रातों नहीं सोता,
                     इस दर्द को जरा पूछो,
                    वो रह-रह क्यूँ सिसकता है?
खिलतें फूल हैं कभी,
कभी झड़े पत्ते भी उड़ते हैं,
                    पतझड़ से जरा पूछो,
                    सावन क्यूँ तरसता है?
तरसती आज रूह मेरी,
खुदा तुझको जो पाने की,
                      क़ाज़ी से जरा पूछो,
                      कहाँ वो(ख़ुदा) बसेरा करता है?
कहाँ ढूंडू सवेरा मैं?
कहाँ करूँ बसेरा अब?
                     मेरे मौला मुझे बता दे,
                    अँधेरा इतना क्यूँ ठहरता है?

Sunday, February 11, 2018

एक अलग मजा....

एक अलग ही मजा है,
तेरे रंग में रंग जाने में,
रूठे तो तुझे मनाने में,
तेरे इश्क़ में,
हद्द से गुजर जाने में,
एक अलग ही मजा है

तुझे बेपनाह चाहने में,
तुझे खोने से डर जाने में,
तेरी आँखों में डूब जाने में,
एक अलग ही मजा ह

तेरी जुल्फें सुलझाने में,
बाँहों में समाने में,
तेरी यादों में खोजाने में,
हाँ,एक अलग ही मजा है;
तुझे बेइन्तेहाँ चाहने में

Wednesday, February 7, 2018

मौजूद हूँ वहाँ?


....और मैं मौजूद वहाँ
जहाँ सूरज भी लाल था,
बादलों से झांकता मुझे।
तितलियाँ सवाँर रही थी सब,
हवा झूलाती फूलों को,
और ची ची की आवाजें,
जो खींचती मुझे तन्हाई से दूर।


मैं इक नशे में डूबा वहाँ
जहाँ बादलों का झुण्ड सफ़ेद था,
घर था किसी इक परी का,
रंग चुराती तितलियाँ फूलों से,
और बिखेरती हवा में;
हरे पेड़ बुला रहे थे,
चहक को अपनी ओर। 


और मैं मौजूद रहा,
वहाँ जहाँ मैं आज भी हूँ,
यादों में तेरी,
महसूस होता भार इक काँधे पर,
सिसकती आवाज लेती नाम मेरा,
धड़कन बढाती;


जुल्फें घोलती मिठास,
इन फीके फूलों की सुंगंध में;
और धीरे से एक जकड़न भींचती मुझे,
शामिल करती तुझमे,
और मैं डूबा रहता,
नहीं डूबा हूँ आज भी नशे में तेरे,
मौजूद हूँ वहाँ।