Search This Blog

Friday, November 17, 2017

उड़ान....











है जो
घेरे तुझे यूँ,
उड़ चल, तेरे पंखों में वो जान आज भी है,
क्या डर है इन् साजिश चेहरों से,
सपनो के तेरे ऊँचे मकान आज भी है,
फैला के उड़ उम्मीदों के पंखों को,
तलाशती रोशनी तेरी उड़ान आज भी है।

Tuesday, November 14, 2017

वो है कहीं ?


शामिल मुझमे वो यूँ,
घुला कोई रंग है;
पन्ना मेरी कहानी सा,
हरचंद वो संघ है!
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?

बेदर –बेदर
बिस्मिल-बिस्मिल

रहता है मुझमे कहीं,
शीप के मोती सा वो,
घुली मिठास मिश्री सी,
रंग कोई रोशनी का वो,
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?

वेह्शत –वेह्शत
जाहिल-जाहिल

बसता है वो मुझमे,
ख़ल्वत भरा शोर कोई,
खू जैसा है मेरा,
तर्क करता मुझमे कहीं,
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?
हसरत सा,वेह्शत सा,
ढूँढू कहाँ उसको मैं फिर?





हरचंद              every moment
बेदर                waken
बिस्मिल          wounded
वेह्शत             madness
जाहिल             bestial
ख़ल्वत            isolation
खू                   habit
तर्क                 relinquishment
हसरत             desire