हाँ हो सकता है, हो आज भी तुम कंही मुझमे,
घुली इक मिश्री की डली सी यादों, में रंग घुलाये हो लाल!
हाँ हो सकता है;
ये भी तो एक भ्रम हो सकता है,
तुम्हारी यादों में मेरे होने का?
इक सूखी पत्ती जैसे टूट चुकी हो,
किसी बड़े पेड़ की!
हाँ हो सकता है;
कि मैं यूँही तपता हूँ इस आग में,
यादों की सब लकड़ी डाले! पिघल रहा हूँ,
ख़त्म हो रहा हूँ हर दिन!
हाँ हो सकता है;
हूँ आज भी मौजूद मैं,
इक भूला साथी किसी अनचाही राह का;
हाँ हो सकता है, दे रहा विस्वास होने का!
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