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Sunday, November 9, 2014

कल का भेदभाव आज की ईर्ष्या..

कहते हैं जब हम विस्वा में पहचाने जाते हैं तो एक देश के नाम से पहचाने जाते हैं जब देश में हो तो एक राज्य एक राज्य में हो तो एक जिल्ला एक जिले में हो तो एक क़स्बा या गौण एक कसबे में या गौण में हो तो एक जाट. और इसी तरह हम बाँट ते जाते हैं और हमे बाँट ता है हमारा समाज वो समाज जो खुद एक सच्चा और च होने का दवा करता है. पर ये भूल चुक्का है की हम कान्हा तक और कब तक सच्चे और अचे हैं. इस देश की सबसे बड़ी कमजोरी है देश की गरीबी क्या सच में है??? या हम आज भी समझ नहीं पाए की कमजोरी है क्या??क्या अन्य देशों में गरीब नहीं???? वैसे भी जब गरीबी का नाम आता है तो हालत देश की खुद दिखने लगती है पर गरबि के साथ साथ एक और है जो समझ को अंदर ही अंदर से बाँट रहा है वो है जातिवाद देश की सोच और विभाजित करने का सबसे बड़ा कीड़ा जो एक ही देश और खून के लोगों को अलग कर रहा है.वैसे तो हम बड़ा दवा करते हैं की हम विस्वा में सबसे अच्छी और विकाशील देश हैं पर क्या ये सच है??? हम सच में आगे बढ़ रहे हैं या ये सिर्फ एक भ्रम है जो हम महसूस क्र रहे हैं??? मेरा मकसद देश की विकाश की गति पे ऊँगली उठाने का नहीं है मेरा मकशद तो सिर्फ अपने आपके और आप सबकी एक सोच बदलने के मकसद पे हैं???? हमारे दावे झूठे हैं क्यूंकि हमारी सोच अभी भी वहीँ है हम २१स्ट सदी में पहुँच तो गए बूत सोच नहीं पहुंचा सके. आज भी हम ब्राह्मण राजपूत और हरिजन में फसे हैं एक ही देश के लोग एक ही परात्मा एक ही रंग और एक ही कसबे के लोगों में भिन्नता. बात दरअसल ये है की हम अपने रूढ़िवादी सोच को नहीं बदल परे या बदलना नहीं चाहते बल्कि उन लोगों को गलत साबित करते हैं जिन्होंने सोच बदलने की कोशिस की मेरा संकेत डॉ बी. र. आंबेडकर जी पर है आज ये समझ रिजर्वेशन को एक भेक मंटा है पर सचाई नहीं जानते ये एक कोशिस थी उनकी जिन्होंने देश के बारे में सोचा उनकी जो एक ही देश के लोगों को भाई चारे की दृष्टि से देखना चाहते थे पर हमने उस सोच को ही छोटा समझा दरअसल पुराने ज़माने में काम बनते गए थे उनकी छमता के हिसाब से क्यूंकि उस ज़माने पढाई का कोई साधन नहीं था और राजा का हुक्म चलता था इसलिए राजा ने कुछ लोग अपनी सलाह के लिए रख दिए जिन्हे बाद में लोगों ने ब्राह्मण कहा कुछ बलवान को अपनी रक्षा और लड़ाई के लिए रखा जिन्हे बाद में समाज ने राजपूत का नाम दिया और कुछ को रखा सफाई के लिए जो इस समाज का सबसे अच्छा काम है पर लोगों ने उसे अछूता या नीच जाट का नाम दे दिया ये काम रंग या खून के हिसाब से नहीं बनते गए थे बास राजा ने भी बिना कुछ सोचे समझे बनते थे पर समय के साथ साथ लोगों ने अपनी अकाल का ज्यादा ही उपयोग करके तीन अलग वर्ग बनाये और साथ ही साथ यह भी कह दिया की हम एक दूसरे के वर्ग के लोगों से न कुछ लेंगे न छुएंगे और रिश्ता तो दूर की बात यही बात चलती रही और आज तक है फिर देश को सुधरने बहुत आये जिनमे से सबसे पहले नाम आता है महात्मा गाँधी जी का जिन्होंने इन लोगों को नया नाम दिया “हरिजन” मतलब हरी के जान उन्होंने इनकी हालत देख के खुद झाड़ू उठके सहर की गलियां और शौचालय साफ़ करना सुरु किया. ये सब देख के भी समझ ने सीख नहीं ली यंहा तक भगवन राम ने तक सबरी के झूठे भर खाके लोगों को सीख देनी चाही बूत फिर भी समझ अपनी सोच से हटा नहीं…. धन्य है ये समझ जो एक सोच नहीं बदल सकता…. बात हमारी या मेरी नहीं बात ये है की हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या सीखा रहे हैं की अपने साथ के दोस्त को भी उसी तरह लो जैसे हमने या हमारे पूर्वज ने लिया. सबसे पहले इस देश के नौजवान को ये समझना है की देश उनके भरोसे आगे जाएगा या उनके पूर्वज की सोच के भरसे ये देश ये समझ हमने बदलना है और अपनी भलाई के लिए बदलना है अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए बदलना है…लेकिन अब की पीढ़ी लोगों को जाती से नहीं रिजर्वेशन से बाँट ने लगी और उनकी जाती भी रिजर्वेशन से तय करने लगी…. आज की पीढ़ी उनसे ईर्ष्या करने लगी की वो हमसे आगे कैसे पर क्या किसी ने ये सोचा की उनके पूर्वज या उनका बीता वक़्त ने उन सबको कितना प्रतदित किया है यंहा तक आज भी लोग उन्हें उसी नजर से देख रहे हैं. गौण के हाल तो और भी ज्यादा बुरे हैं लोग इन लोगों को अपने से दूर बिठाके भोजन परोसते हैं जैसे वो कोई इंसाने नहीं जानवर हो उनके लिए अलग से बर्तन रखते हैं उसी प्रकार जिस तरह एक जानवर को दिया जाये. सहारों में के हालत भी ऐसे ही हैं बास शर्तें बदल चुकी है. कुछ गलती उन लोगों की भी है जो झुकते हैं पर सबसे बड़ी गलती तो उनकी है जो उन्हें झुकाते हैं या झुकने को मजबूर करते हैं. एक लड़का या लड़की अगर अपश में प्यार करे तो उसके लिए भी शर्त ये है की लड़का या लड़की अपनी जाट का होना चाहिए एक प्यार जैसे रिश्ते में भी जातिवाद आज न जाने कितने ही ऐसे केश िश देश की कोर्ट में चल रहे हैं. माता पिता भी यही सोच बैठे हैं की लड़की या लड़का उनके साथ जिंदगी बिताएगा अपनी खुशियों के लिए अपने बच्चों की क़ुरबानी देना कान्हा सही है????? जिंदगी आगे बच्चों ने जीनी है देश आगे बच्चों ने बदलना है और क्या कोई भी इंसाने ऊपर से ही यह सोचके आता है की मुझे ब्राह्मण परिवार चाहिए या राजपूत भगवन सबका एक है और हम सब उस्सकी संतान और इंटरकास्ट मैरिज से कोई भी इंसाने छोटा या बड़ा नहीं बन जाता नहीं उसका धर्म नष्ट होता है.. बस होता है तो एक नेक काम िश समाज और देश की सोच बदलने का और हम लोगों को इस बात का गर्व होना चाहिए की हमने देश के बारे में कुछ सोचा और किया भी अपने बच्चों को और आगे आने वाली पीढ़ी को एक नयी राह दिखाई जिस राह में सिर्फ उजाला ही उजाला है… सोचने से देश नहीं बदलेगा उसे बदलने के लिए खुद पहल करनी होगी. और ये सब करने से भले तुम्हारी जाट के लोग गलत सोचे पर ये देश और देश की समझदार जनसँख्या तुम्हे सलामी देगी और तुमसे सीखेगी.आज की पीढ़ी सबसे ज्यादा परेशान है रिजर्वेशन से और वो इन लोगों से ईर्ष्या कर बैठे हैं.. जनता हूँ थोड़ा सोचनीय विषय तो है पर ये भी है की हमारी पूर्वजों ने उन्हें बहुत दुःख दिया है उन्हें बहुत दुद्कारा है और उन जख्मों को भरने में थोड़ा वक़्त लगेगा और ये रिजर्वेशन उन्हें आगे बैठने के लिए है ताकि वो अपने घर से और समझ की छोटी सोच से आगे बढ़ कर कुछ कर सकने क्यूंकि ये देश उतना ही उनका है जितना हमारा. और जिस दिन से लोग ये समझ बैठेंगे उस दिन से रिजर्वेशन जैसी चीज भी समझ में न रहे... हालत सुधरने में वक़्त का इंतज़ार नहीं करना चाहिए बल्कि वक़्त को इस कदर बदलो की हालत खुद सुधर जाये. हम सबको खड़ा उठके उन लोगों को गले से लगाना चाहिए और उन्हें भी भाई का दर्जा देना चाहिए ये समाज सबके लिए एक है. बास सोच बदलनी है देश हमारे कन्धों पे चलेगा न की पिछली पीढ़ी की और कोशिस करें उन्हें भी कुछ समझा सकें. हमारा सबसे पहला उद्देस्य है कंट्री फर्स्ट और ये कदम भी देश के लिया है कब तक हम जातिवाद और धर्म के नाम से लड़ते रहेंगे अगर लड़ना ही है तो आतंकवाद से क्यों न लादेन जिससे देश का भला हो और हमारा भी.ाषा करता हूँ मेरी कुछ सोच से और इन शब्दों से कुछ सुधर आएगा एक डीप की रौशनी ही बहुत है काली रात के साये को हटाने के लिए और अगर ये डेप नहीं जलाया तो हम सायद १८ सदी से कभी आगे नहीं आ पाएंगे. 

Friday, January 31, 2014

चरित्र निर्माण

व्यक्तित्वा का विकाश चरित्र से होता है और चरित्र से ही मनुस्य की पहचान होती है. इसलिए चरित्र निर्माण सबके लिए महत्वपूर्ण है. प्रकृति का नियम है की एक मनुस्य की आकृति दूसरे से भिन्न होती है आकृति का यह जन्मजात भेद आकृति तक ही सिमित नहीं है उसके स्वभाव संस्कार और उसकी प्रकृतियों में भी वही असमानता रहती है. इस असमानता में ही श्रिस्ति का सौंदर्य है. प्रकृति हर पल अपने को नए रूप में सजती है हम इस प्रतिपल होने वाले परिवर्तन को उसी तरह नहीं देख सकते जिस तरह हम एक गुलाब के फूल में और दूसरे में कोई अंतर नहीं कर सकते. परिचित वस्तुओं में ही हम इस भेद की पहचान आसानी से कर सकते हैं. चरित्र शब्द मनुस्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्वा को प्रकट करता है.'अपने को पहचानो' शब्द का वही अर्थ है जो अपने चरित्र को पहचाने और अपने को पहचान न बहुत ही कठिन नहीं है. आज हम दूसरे की निंदा बहुत ही सरलता से कर लेते हैं; पर अपने आपको पहचान ने में असमर्थ हैं. क्या ये हमारी प्रकृति है?या मनुस्य का स्वभाव ही ऐसा हो गया है? चरित्र निर्माण के लिए सबसे पहला कदम यही है की हमे अपनी सोच बदलनी है हम अब यह सोच बैठे हैं की हम इस पृथ्वी पर आखिरी पीढ़ी बची हैं; यह भूल चुके हैं की जो हम यंहा छोड़कर जायेंगे हमारी आने वाली पीढ़ी वही अपनाएगी. चरित्र निर्माण शिशु के जन्म लेने से बहुत वर्ष पहले से ही हो जाता है. एक बार एक वृद्ध अपने घर के आँगन में आम के पेड़ लागरे थे तो किसी ने उनसे पूछा श्रीमान क्या आप इस वृक्छ के फल खाने तक जीवित रहोगे? तो वृद्ध ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया "क्या जो अपने बचपन से लेकर अब तक फल खाये हैं वो क्या वृक्ष मैंने लगाए थे?" अर्थात कहने का भाव यह है की जिस तरह हम अपने लगाए वृक्छों के फल दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं इसी प्रकार हम अपने चरित्र की पहचान भी छोड़ जाते हैं और हम यह भी कह सकते हैं की इसी तरह मनुस्य का चरित्र निर्माण उसके जन्म लेने से १०० साल पहले से ही हो जाता है. आज हमारे सामने सबसे बड़ा सवाल यह है की हम क्या अपनी आने वाली पीढ़ी को यह समाज इसी हालात में विरासत में दें? क्या हमारा हक़ इसे बदलने का? मैं मानता हूँ मनुस्य दिन प्रति दिन स्वार्थी बनता जा रहा है पर अपनी नयी पीढ़ी का स्वार्थ मनुस्य के दिल में क्यों नहीं? वो भी तो हमारे अपने हैं.... मनुस्य का चरित्र निर्माण उसकी शिक्षा उसके घर और आस पास के वातावरण से होती है यह सब चीजें शिशु के जन्म लेते ही उसपर असर करने लगती है. हमे यह नहीं भूलना चाहिए की जो हमारे पूर्वज हमारे लिए छोड़ गए थे हमने वही अपनाया है और उसी तरह हम भी अपने आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ जायेंगे और यह क्रम पृथ्वी के नष्ट होने तक चलता रहेगा तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए एक साफ़ सुथरा समाज छोड़ जाने के बारे में क्यों नहीं सोचते ?

Sunday, January 26, 2014

कुछ पल यूँ लगा जैसे तुम हो.


कुछ पल यूँ लगा जैसे तुम हो..
कुछ पल यूँ लगा जैसे तुम हो..


ख्यालों में खोते खोते जाने कब आँख लगी,
तेरे हुस्न-ऐ-दीदार तमन्ना जाने कब आँख लगी.
तेरी बाँहों में खोया रहा रात भर.

 कुछ पल यूँ लगा जैसे तुम हो..
हर पल यूँ लगा जैसे तुम हो..


तुमने कहा था प्यार जुबान-ऐ-बयां नहीं होता
फिर तेरा नाम लेते ही क्यों बयां होता है?
मेरी हर बात में तुम हो जैसे,
 मेरी हर सांस में तुम हो..


क्या तुम्हे याद है पहली दफा जब हम मिले थे?
उस सुबह की चमक तुम्हारी आँखों में आज भी दिखती है,
मुझे तेरा घबराके गले लग जाना आज भी बहुत भाता है!

फिर तुम्हे क्यों लगता है यूँ अकेले छोड़ गए हम तुम्हे?
तेरी वफ़ा की कदर है हमे,
 शायद यही सोचके आज भी तेरी गली में जाते हैं अब भी!

कल रात को ख्याल आया की जैसे तुम हो..
हर पल यूँ लगा जैसे तुम हो..
तेरे छुवन का एहसास हुवा तो लगा जैसे तुम हो..
कुछ पल यूँ लगा जैसे तुम हो..!

Friday, January 24, 2014

ख्वाब..

कन्हा भुला हूँ तुम्हे? 
कन्हा भुला हूँ तुम्हे?


अक्सर तुम ये कहते थे,कि  

"जमीनी सफर मुकम्मल होते ही
तमाम रिश्ते धुंदले पड़ने लगते हैं"!

क्या अब भी तुम्हे ऐसा लगता है?
देखो तो आज भी कितनी बेसब्री से मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ;

तुम्हारे मुस्कराते चेहरे को जब तक ना देख लूँ 

चैन और करार कान्हा आता है मुझे?तुम्हे भी रिश्ते निभाने आते हैं ये जान चूका हूँ मैं,

खाब में सही हर रोज वक़्त निकालकर तुम आज भी रिश्ता निभाने आ ही जाते हो